End Rape Culture Now
हाँ माना अंग थोड़े अलग से हैं, तो क्या हुआ, क्या वो इंसान नहीं, रस्तों पे अकेले ही तो चल रही थी, तो फिर नजरों से क्यूँ डालते उसके अंगों पे निशान कईं, सोचो कभी अगर उस जिस्म की खोल मे रूह तुम्हारी होती, घूरती नजरें तुमको भी और रूह तुम्हारी भी बेचारी होती, हर पल, हर कदम एक संघर्ष […]